सूना - सूना घर
सूना - सूना सा ये घर नज़र आता है ,
शायद तेरे जाने का असर नज़र आता है ।
यूँ तो अकेले रहने की भी आदत थी हमें ,
पर अब तो अकेलापन भी पराया सा नज़र आता है ।। सूना -सूना ....
क्या कहूँ इसे, कि याद आती है तेरी,
या खुद का स्वार्थ नज़र आता है ।
तुम भी कहोगे सब बेकार की बातें हैं ,
चेहरे से तो ये शक्श बेफिकर नज़र आता है ।। सूना -सूना ....
दिल के आलम को कौन समझ सका है ,
जिसने समझा वो ही साथ ठहर पाता है ।
जीने को तो हम यूं भी जी लेंगे ,
एक खुदा तो है जो सदा साथ निभाता है ।। सूना -सूना ....